दुखी आत्मकथा

   

Written by:

घोर कलियुग है साहब। इंसान दुर्गति करता ही जा रहा है। रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। मैं द्वापर युग में तपस्या करने बैठा था और भगवान् से दुनिया के उद्धार की कामना करता जा रहा था। मुझे मेरे साथियों ने चेताया था कि कलियुग आने वाला है, वहां तेरी तपस्या का कोई मोल नहीं है, पर मैं न माना।

अब मैं थक गया हूँ इन सारे अत्याचारों से, दुःख होता है यह सब देखकर। कहाँ गया वो अतिथि देवो भवः का भाव?

दरअसल बात कुछ समय पहले की है। मैं तपस्या ख़त्म करके जब वापस आया तो आसपास की तरक्की देखकर बहुत खुश हुआ। सोचा अपने घर की ओर चला जाऊं। बहुत ढूंढने पर घर मिला। जैसे ही मैं घर के दरवाज़े पर पहुंचा तो पाया कि एक छोटा बच्चा खाना खाने में आनाकानी कर रहा है। उसकी माँ खूब बहलाने फुसलाने की तरकीब लगा रही है मगर कोई सफलता हाथ नहीं लग रही थी। अचानक ही उसने मेरी तरफ इशारा करके कहा की खाना खा ले वरना लुल्लु आ जायेगा।

मैं एकाएक सकपका गया। भला इस औरत को मुझसे ऐसी क्या दुश्मनी है कि मेरी दुहाई देकर बच्चे को खाना खिला रही है। आश्चर्य की बात यह है कि बच्चे ने डर से खाना खा भी लिया।

हार्वर्ड के पीएचडी माफिक ज्ञान है मुझे और मुझपर इलज़ाम है कि मैं बच्चों का खाना खा जाऊंगा? अरे भई मैं कोई मंत्री थोड़े ही हूँ। मैं तुरंत ही निकल गया अपने नए ठिकाने की तलाश में। चलते चलते कोसों दूर आ चुका था, सोचा किसी घर रुक कर थोड़ा पानी मांग लूंगा। थोड़ा शांत सा घर देख कर उसके द्वार पर पहुंचा ही था कि एक औरत की आवाज़ आयी। मैंने भगवान् का नाम लिया और प्राथना की कि बस यह औरत भी पिछली वाली की तरह मुझपर इल्ज़ाम न लगा दे।

इस बार भी वही हुआ। उस माँ ने अपनी बेटी से बोला कि बेटी खाना खा ले वरना हाउ आ जायेगा। मैं अपना माथा पकड़ कर बैठ गया। यह क्या तरीका हुआ बेइज़्ज़ती करने का भला? यह क्या बेतुकी बात थी? हाउ क्या नाम होता है? कम से कम पिछली औरत ने नाम तो नाम जैसा दिया था। यहाँ तो वो इज़्जत भी ले ली गयी हमसे। क्या अजीब किस्म के लोग हैं कलियुग में। सही कहते थे मेरे साथी कि कलियुग में तपस्या का कोई फायदा नहीं, सब टिक टॉक में अजीब से वीडियो बनाते घूम रहे हैं।

इस घर से भी फटकार मिलने के बाद मैं वहां से भी निकल गया। रास्ते भर सोचता रहा की इंसान खुद को इतना बड़ा मानता क्यों है? हरकतें इनकी तो कुछ और ही इशारा करती हैं। ऐसा क्या दिख जाता है मुझमें जो मुझे ऐसे भगा देते हैं? खुद तो जैसे हूर के परी/परे हैं ना। मुझपर धिक्कारने वाले ये सब लोग वही हैं जो खुद को ही मिस यूनिवर्स का खिताब देते घूमते हैं। अरे कभी जुपिटर की जुपियों को देखा है? उनकी ख़ूबसूरती से इतने भौंचक्के हो जाओगे कि मुँह खुला का खुला ही रह जाएगा। सैटर्न की सतूनियाँ तो मतलब भाई साहब वाह। इतनी सुन्दर हैं कि अगर तुम उन्हें छू लो तो ऐसा लगता है कि गन्दी हो जाएँगी। क्या कहा? ख़ूबसूरती तो अंदरूनी होती है। हाँ हाँ जैसे तुम सारे इंसान तो फेयर एंड लवली अपनी आत्मा साफ़ करने के लिए इस्तेमाल करते हो ना। और ये जुपियों और सतूनियों की याचिकाओं की ही देन है कि बेचारा प्लूटो अब वापस से ग्रह में गिना जाता है।

न जाने क्यों इंसान मेरा सहारा लेकर डरा रहा है सबको। मेरी मेहरारू मुझसे पहली नज़र में ही घनघोर प्रेम कर बैठी थी। और यहाँ मुझे डरावना बता रहे हैं लोग।

इन सब विचारों में न जाने कब खो गया की मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब भारत के पूर्वोत्तर राज्य में प्रवेश कर गया। यहाँ कौन से घाट थे इंसान जो मुझे बुरा भला कहे बिना मान जाते। यहाँ मछिन्दर नाम रख दिया मेरा। नहीं भाई पंजाबी नहीं हूँ मैं। गज़ब का जज कर जाते हो। और आगे गया तो झुझुपुड़ी और बोन्ज़ो तक कह दिया। गरारे करते वक़्त नाम सोचते हो क्या? और ये कौन से बच्चे हैं जो जीते जागते माँ – बाप की बात नहीं मान रहे लेकिन किसी इंसान द्वारा गरारे करते वक़्त रखे गए नाम से डर जा रहे हैं? अरे भाई चल क्या रहा है? कैसा समय है ये? बच्चा अपने बड़ों से डरने की जगह मुझसे डर रहा है।

भारत छोड़ना ही सही लगा मुझे। मैं भी चल पड़ा सबके सपनों के देश अमरीका। देखो जी आप मानो या न मानो कुछ बात तो है इस देश में। तुम सब भी कागज़ इस्तेमाल करने लगो पानी की जगह, शायद विकास हो जाये। देश को बाहर के लोग चला रहे हैं मगर उन्ही को भगाने में लगी रहती है सरकार। बहुत गज़ब देश है ये। इन्ही सब विचित्रताओं के बीच में मैंने अपने लिए एक घर ढूंढ लिया। ये बड़े बड़े कमरे थे उस घर में। मैं बढ़िया एक कमरे को चुन कर चौकड़ी जमा कर बैठ गया। मन बना लिया कि अब यहीं से गढ़ गंगा जायेंगे।

ज़िन्दगी बढ़िया कट रही थी। दूध छाछ की किल्लत थी क्योंकि इन निगोड़ों को तो सुबह ठन्डे ठन्डे कॉर्न फ्लेक्स खाने होते हैं। मगर ठीक ही है। कम से कम कोई यहाँ नाम तो नहीं रख रहा था मेरा। मगर मेरी ख़ुशी देखी कहाँ जा रही थी किसी से। एक अभागी रात को मैं बढ़िया ग्रहशोभा पढ़ते पढ़ते सो गया। अब उम्रदराज़ जीव खर्राटे तो ले ही लेता है। शायद इसी वजह से मेरे कमरे में सोता हुआ बालक उठा और नीचे झाँकने लगा। फिर न जाने क्यों वो रोता बिलखता हुआ भाग खड़ा हुआ। कुछ देर बाद मुझे सुनाई पड़ा :

“Oh my God Trevis! What happened dear?
Mom! There’s a monster under my bed”

मॉन्स्टर? बस अब बहुत हुआ।। इस चरित्र-चित्रण से दुखी हो गया हूँ मैं। नहीं सह सकता अब ये इल्ज़ाम। अपनी ज़िन्दगी ख़त्म करने ही वाला था कि मुझे याद आयी संत हार्वी डेंट की वो बात :

बस उसी दिन से कसम खा ली कि अब वही बनूँगा जिस से वो इंसान बचना चाहता है। बचकर रहना अब, लुल्लु बड़ा हो गया है।

16 responses to “दुखी आत्मकथा”

  1. Lata chaudhary Avatar
    Lata chaudhary

    Bhut achha likha hu

    Like

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      Dhanyavad Bua 🙂

      Like

  2. Kamalesh Avatar
    Kamalesh

    Sounds ok. Not that great story line…you should make it more interesting. Well written otherwise.

    Like

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      Thanks for the feedback! Will work on it 🙂

      Like

  3. BRIJ BHUSHAN SINGH Avatar
    BRIJ BHUSHAN SINGH

    Nice story

    Like

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      Thank you so much 🙂

      Like

  4. Rachna Avatar
    Rachna

    Good story. Keep it up!!

    Like

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      Thank you so much 🙂

      Like

  5. Rita Avatar
    Rita

    Nice story dear

    Like

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      Thanks 🙂

      Like

  6. P S Bisen Avatar
    P S Bisen

    Keep on trying n trying to achieve perfection

    Like

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      Surely. That’s the aim.

      Like

  7. Avichal Avatar
    Avichal

    Liked the writing style

    Like

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      Thanks man 🙂

      Like

  8. Shobha Avatar
    Shobha

    😂 amazing and strong villain….ase he likhte rhna..💕

    Liked by 1 person

    1. Abhishek Singh Avatar
      Abhishek Singh

      haha. Bilkul aise hi continue rahega!

      Like

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.